अगस्त 2012
गुड़गाँव-मानेसर की सैकड़ों छोटी-बड़ी आटोमोबाइल
कम्पनियों में गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले कई प्रकार के पार्ट बनते हैं और
सभी में 90 से लेकर 100 प्रतिशत मज़दूर
ठेके पर काम करते हैं। ये कम्पनियाँ यहाँ स्थित मारुति सुज़ुकी, होण्डा, हीरो जैसी कम्पनियों को
सप्लाई करने के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में और विदेशों में मोटरसाइकल, कार, ट्रक आदि के
पार्ट-पुर्जे निर्यात करती हैं।
इनमें से कुछ हैं : एस.के.एच. कृष्णा लिमिटेड (गाड़ियों
की टंकियाँ), मशीनो प्लास्टिक लिमिटेड (बम्पर और प्लास्टिक के पार्ट), कपारो लिमिटेड
(खिड़की-दरवाजे), ल्युमेक्स लिमिटेड (बल्ब), मुंजाल लिमिटेड
(शॉकर) मदरसन लिमिटेड (प्लास्टिक के बम्पर और तार), कृष्णा मारुति
लिमिटेड (प्लास्टिक पार्ट, बल्ब, सीटें आदि) पहली छह कम्पनियों के गुड़गाँव में एक या दो
प्लाण्ट हैं और कृष्णा मारुति लिमिटेड के गुड़गाँव और मानेसर में कुल 28 प्लाण्ट हैं।
इन सभी में ठेका मज़दूरों की स्थिति लगभग एक समान है।
जाँच-पड़ताल और मज़दूरों से बातचीत करने पर यह जानकारी मिली। सभी में 8-8 घण्टे की तीन
पालियों में 24 घण्टे काम होता है। ठेका मज़दूरों के लिए 8 घण्टे काम के बदले
महीने में 4850 रुपये का वेतन निर्धारित है, जिसमें 12 प्रतिशत पीएफ और 1.75 प्रतिशत ईएसआई
कटने के बाद लगभग 4100 रुपये महीना वेतन मज़दूर को मिलता है। पीएफ की
कोई रसीद या ईएसआई कार्ड किसी मज़दूर को नहीं दिया जाता। सिर्फ काम पर
आने के लिए एक गेटपास दे दिया जाता है। ज्यादातर मज़दूरों का कहना है कि
कम्पनी छोड़ने पर पीएफ या ईएसआई का कोई पैसा कम्पनी नहीं देती, और मज़दूर कुछ समय
तक चक्कर लगाने के बाद थक-हार कर छोड़ देते हैं, क्योंकि उनके पास
काम करने का कोई प्रमाण भी नहीं होता। यानी वास्तव में मज़दूरों का कुल
वेतन 4100 रुपये ही है। हर
जगह ओवरटाइम सिंगल रेट पर दिया जाता है। ऐसे में मज़दूर 12 से 16 घण्टे तक काम करते हैं। 16 घण्टे की डबल
शिफ़्ट में काम करने पर मज़दूरों को एक दिन के 180 रुपये अधिक दे
दिये जाते हैं। काम पर आने में लेट होने पर आधे दिन का वेतन काट लिया
जाता है।
मज़दूरों ने बताया कि सुपवाइज़र या मैनेजर मज़दूरों को
हड़काकर काम करवाते हैं, कभी-कभी बहस और मारपीट हो जाती है, मगर मज़दूरों की
शिकायत पर कभी भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती। ज्यादातर घटनाओं में मज़दूर
का चालान करके उसका गेटपास छीन लिया जाता है और काम से निकाल दिया जाता
है। निकाले गये मज़दूर को बकाया वेतन ठेकेदार से लेना होता है, लेकिन वह कभी नहीं
मिलता। कई ठेका मज़दूर आई.टी.आई. और डिप्लोमा वाले भी हैं, और छह-सात साल काम
करने के बाद ही उन्हें पर्मानेन्ट किया जाता है। इन्हें भी लगभग 6000 वेतन मिलता है।
पहले ये कम्पनियाँ बाहर से सुपरवाइज़र भर्ती करती थीं, जिन्हें ज्यादा
वेतन देना पड़ता था लेकिन अब मज़दूरों के बीच से ही कुछ को छाँटकर उनका थोड़ा वेतन
बढ़ाकर सुपरवाइज़र बना दिया जाता है।
इनमें से किसी कम्पनी में ठेका मज़दूर की माँगों को लेकर आज
तक कभी कोई आन्दोलन नहीं हुआ। यहाँ न तो कोई यूनियन है और न ही कोई
यूनियन कभी इन मज़दूरों के बीच जाती है।
कम्पनियों में अक्सर ही दुर्घटनाएँ होती रहती हैं, और कई बार
मज़दूरों की मौत भी हो जाती है। लेकिन शायद ही किसी दुर्घटना के बाद
मज़दूरों या उनके परिवार को उचित मुआवज़ा मिलता है। ज्यादातर
दुर्घटनाओं की न तो कोई जाँच होती है न ही प्रशासन कोई कार्रवाई करता है, इनकी कोई ख़बर भी
बाहर नहीं आती।
मारुति, मानेसर में 18 जुलाई की घटना के दो ही दिन बाद, 21 जुलाई को मारुति
के गुड़गाँव प्लाण्ट में ट्रक से गाड़ी के पुर्जों के डिब्बे उतारते समय ट्रक के
ब्रेक फेल होने से एक मज़दूर की कुचलकर मौत हो गई। इसके कुछ ही दिन बाद, 28 जुलाई को ट्रक से
सामान उतारते समय एक और मज़दूर की ट्रक से कुचलकर मौत हुई। यह दुर्घटना
कम्पनी के अन्दर हुई थी लेकिन मैनेजमेण्ट इसे सड़क पर हुई घटना बता रहा था।
इन दोनों घटनाओं के बाद मैनेजमेण्ट ने आनन-फानन में लाश को एम्ब्युलेंस में
रखकर मज़दूर के गाँव भिजवा दिया। दुर्घटना करने वाले ट्रक और ड्राइवर को
तुरन्त बाहर भेज दिया गया। मृतक मज़दूरों के परिवार को कोई हर्जाना भी नहीं
दिया गया। मज़दूरों का कहना है कि सामान्य स्थिति में यदि ट्रक से कोई
दुर्घटना होती है और सामान का कुछ नुकसान होता है तो मैनेजमेण्ट ट्रक का
चालान करवाता है, लेकिन जब किसी दुर्घटना में मज़दूर मरता है तो ट्रक का
चालान नहीं किया जाता। इन दोनों घटनाओं को ख़बर किसी अख़बार या टीवी चौनल पर
नहीं आयी, न ही प्रशासन ने कोई
जाँच की। ये मज़दूर ठेका पर काम करते थे और उनके पास यह साबित करने के लिए
कोई प्रमाण नहीं था कि वे इसी कम्पनी के लिए काम करते थे। इस घटना के
समय मानेसर की घटना के कारण कम्पनी में पुलिस बल भी तैनात था।
इसी साल मार्च में मानेसर में मशीनो प्लास्टिक लिमिटेड
कम्पनी में छत गिरने से छह ठेका मज़दूरों की मौत हो गयी थी। लेकिन बाहर
बताया गया कि सिर्फ 2 मज़दूरों की मौत हुई है। इन मृत मज़दूरों के
परिवार वालों को भी न तो कोई हर्जाना दिया गया और न ही कोई कार्रवाई या जाँच
की गयी।
कपारो लिमिटेड में पिछले साल एक मज़दूर का हाथ कट गया था, कम्पनी ने उसके
तात्कालिक इलाज के पैसे देकर उसे काम से निकाल दिया और कोई हर्जाना मज़दूर को
नहीं दिया गया।
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